Menu
blogid : 13071 postid : 778143

जमाने का सताया निरीह बाप ! (In light vein)

D.N.Barola
D.N.Barola
  • 33 Posts
  • 1 Comment

जमाने का सताया निरीह बाप ! (In light vein)
मेरे लेख के इस हैडिंग को देख कर आप कहेंगे कि किस बाप ने यह ऊल जलूल हैडिंग लिखा है. पर मानो या न मानो आज का बाप वास्तव मैं जमाने का बुरी तरह सताया होता है. वैसे कहते हैं अपनी इज्जत अपने हाथ . इसलिये किसी भी बाप को ऐसा नहीं लिखना चाहिये. पर क्या करैं मजबूरी है. आप ही बताइये कि क्या बाप ही ऐसा प्राणी नहीं है जिसके केवल कर्तब्य होते हैं, अधिकार नहीं. घर मैं जिनसे वह घिरा होता है, यानी बेटा, बेटी, बहू, पोता, पोती और सबसे उपर धर्मपत्नी, क्या यह सब अधिकार संपन्न नहीं होते ? बाप ही ऐसा प्राणी है जिसके ऊपर इनमैं से कोई भी उत्पी ड़न का आरोप लगा सकता है. कानून इसकी इजाजत देता है. यदि कोई ब्यक्ति लोगों से शिकायत करता है कि उसकी पत्नी, बेटा, बेटी, बहू ने उसकी पिटाई की है, उसे मारा है या उसका उत्पीड़न किया है तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी ? वह आपकी बात पर केवल हंसने लगेगा और बाप को बेवकूफ सिद्ध कर देगा. शादी के बाद आदमी अपने को शहंशाह समझने लगता है. पर कुछ ही दिनों मैं उसका भ्रम टूट जाता है. यदि पत्नी नाराज हो गयी और गुस्से मैं थाने चली गई तो समझ लीजिये खैर नहीं. यदि आपकी खुशामद काम आ गई तो ठीक, नहीं तो आप खाईये जेल की हवा. ठीक यही बात बेटा बेटी पर भी लागू होती है. पुत्र 7-8 साल का होते ही मोबाइल की मांग कर देता है, तो लड़की कैसे पीछे रहे, वह कहती है की भैया को मोबाइल दिया तो मुझे क्यों नहीं. आप पार्सीयलिटी करते हैं. पत्नी के पास तो पहले ही मोबाइल होता है. इस प्रकार आपके तीन तीन बौस आपको कोई भी आदेश कभी भी दे सकते हैं, जिनका आपको पालन करना है, नहीं तो आप नाकारा बाप कहलाये जायेंगे. जहां लड़का 13-14 साल का हुवा तो उसकी नई मांग खड़ी हो जाती है. वह कहता है मुझे बाइक दो. आप कितना ही समझाइये कि उसे बाइक 18 साल बाद ही दी जायेगी, पर वह वह नहीं मानेगा और आत्म हत्या तक की धमकी देने से बाज नहीं आयेगा । टालते टालते आपको एक-दो साल मैं बाइक तो देनी ही होगी. यदि आप रसूखदार नहीं हैं तो पुलिस की हड़काई भी सुनने को तैयार रहैं. इसी बीच लड़की कहती है भैया को बाइक दी है तो मुझे स्कूटी क्यों नहीं ? बेचारा निरीह बाप कर भी क्या सकता है. उसे यह बात भी माँगनी पड़ती है. किसी का भी बर्थडे हो आपको पार्टी भी करनी ही है ओर प्रेजेंट भी लानी है. खुद को चतुर सुजान समझने वाला यह निरीह बाप परिवार के लिये अनेक प्रकार से उपयोगी होता है. सर्वप्रथम वह परिवार के लिये एटीएम का कार्य करता है बच्चों के साथ जब पत्नी शौपिंग को जाती है तो वह प्रफुल्लित मन से पति की सराहना करते हुवे ज्यादा से ज्यादा शौपिंग कर स्वयं, बच्चों व पति को भी मुदित रखने का प्रयास करती है. लगे हाथ यदि याद आ गया तो पति के लिये भी कभी कभार एक आध कमीज की शौपिंग हो जाती है . शौपिंग के पहले पति का एक और रूप सामने आता है. पति एक आग्याकारी ड्राइवर की तरफ सबको वाहन मैं बैठाकर शौपिंग ले जाते हुवे गर्व महसूस करता है. आपके कोई अधिकार तो है ही नहीं. इसलिये भुगतो. इसीलिये तो किसी विद्वान ने कहा है – शादी वो गुड़ है जिसे खाओ तो पछताओ और न खाओ तो भी पछताओ। अच्छा मजे की बात यह हैं ये सारे अधिकार जो औरों को मिले हैं वह बाप लोगों ने ही दिये है, और जो अधिकार बापों से छीने गये वह बाप लोगों ने ही छीने है। बाप लोगों को अब भी सुधार जाना चाहिये. सबके अधिकार और कर्तब्य समान होने चाहिये। कब अकल आयेगी इन बाप लोगों को ? आयेगी भी कि नहीं ?

एक जमाना था जब बाप नाम के इस निरीह प्राणी की बड़ी इज्जत हुवा करती थी। वह घर का सर्वेसर्वा हुवा करता था। बीबी, बच्चे सब ही उससे डरते थे। पिता अपने घर का एकमात्र स्वामी होता था। उसे पिताजी , बाबूजी आदि नामों से आदरपूर्वक बुलाया करते थे । समय के अनुसार बाबूजी से सौर्ट मैं वह ‘बाबू’ या ‘बा’ तथा पिताजी के बजाय वह ‘पापा’ या ‘पा’ बना दिया गया. और अन्त मैं वह ‘डैड’ (dead) बन गया । एक जमाना था जब बुजर्गों की बढ़ी इज्जत होती थी ! समय बदला और बुजर्गों का स्थान मूक दर्शक का बन गया । उन्हें बकायदा बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। पहले मौहल्ले व नगर मैं कुछ इज्जतदार लोग माने जाते थे ! वह धारणा भी समाप्त हो गयी। परंतु समय ने पलटा खाया। महिला अधिकारों के लिये बाप लोगों ने लड़ना शुरू किया और नतीजा आपके सामने है। सच तो यह है कि हम पाश्चात्य संस्कृति की तरफ बढ़ रहे है। परंतु हम अधकचरे है। बेटा बेटी माँ बाप का कहना नहीं मानेंगे, उनके बुढ़ापे का सहारा भी नहीं बनेंगे। परंतु उसकी स्वअर्जित जायदाद पर हिस्सा जरूर मांगेंगे । पुराने संस्कारों से बंधे बाप के लिये यह एक अजीब सी दुविधा होती है। समय बीत रहा है, और इसके साथ ही अधिकांश माँ बाप भी बच्चों की तरफ कुछ कम ध्यान देने की सोचते हैं। उनको यह महसूस होता है कि अब बेटा बेटी ज्यादा समझदार हो चुके है. सच भी है उन्हें मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट सभी तो आता है .और बाप को तो इनका ज्ञान ही नहीं है ! तो वह कैसे राय दें ! खास तौर से तब जब वह राय सुनने को तैयार ही नहीं है। इस प्रकार दोनों के बीच खाई बढ़ती सी लगती है। पाश्चात्य देशों मैं तो बेटा बेटी बालिग होने के बाद अलग रहना पसंद करते है। पर भारत मैं तो अब भी बाप की इच्छा होती है कि वह पोता-पोती को पाले, उनकी देख भाल करे, उनकी शादी करे और उसकी सबसे बड़ी अभिलाषा होती है कि वह पड़पोते का मुंह भी देख ले . परंतु अब समय के साथ स्थितियाँ बदल रही है। नवजवान अकेले ही रहना चाहते है। यदि बुढ़ापा शांति से काटना है तो अंग्रेज़ ही बनना पड़ेगा। बच्चों को पढ़ाओ लिखाओ और बालिग होने के बाद उन्हैं स्वंत्रता दो। और पति पत्नी सुख से अकेले रहने के बारे मैं सोचना शुरू कर दो। नोट अपने जेब मैं ही रखो। वक्त जरूरत काम आयेंगे। वैसे बाहर के देशों मैं तो बातैं एक कदम और भी आगे बढ़ चुकी है। बच्चों की जिम्मेदारी समाप्त होने के बाद पति पत्नी अलग हो रहे हैं। वह दोनों नये जीवन साथी की तलाश की सोच रहैं हैं। यदि वर्तमान ट्रेंड चलता ही रहा वह दिन दूर नहीं जब भारत भूमि मैं भी ऐसा ही कुछ हो सकता है। ऐसे मैं लगता है कि शायद निरीह बाप निरीह ही रहने के बजाय अपने पुराने खुसगवार दिनौ की तरफ लौट जाय ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply