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क्या पलायन के लिए मानव-पशु अनुपात का गड़बड़ाना दोषी है ?

D.N.Barola
D.N.Barola
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आजकल चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय पलायन है l अधिकाँश लोग मानते हैं कि यदि बंदरों व अन्य वनैले पशु जैसे घुरड़ , काकड़ , खरगोश , भालू , सुवर , सौल आदि के आतंक से छुटकारा मिले तब ही पलायन रुक सकता है l उत्तराखंड मैं जानवरों से आतंकित हो लोग कृषि कर्म छोड़ रहे थे और गाँव छोड़ भाग रहे थे। इससे हमारे सरहदों की सुरक्षा पर भी प्रश्न चिन्ह लग सकता है l इसलिए पलायन रोकना अति आवश्यकीय है l
अमेरिका प्रवास के दौरान मैंने देखा न्यू जर्सी इलाके मैं जहां मैं रहता था, हिरन बहुत होते हैं l सरकार प्रतिवर्ष उनकी संख्या स्थिर रखती है ! ज्यादा हिरन होने पर उन्हें कानूनन मार देती है l भारत मैं तो आवारा कुत्ते आदमी को काट दें और उसकी मृत्यु हो जाय, तो यह अपराध नहीं है l परन्तु यदि आदमी आवारा कुत्ते को मारना तो दूर, नुक्सान भी पहुंचा दे, तो यह अपराध है l यह तो अंधेर नगरी और चौपट राजा वाली कहावत हो गई ! कटु सत्य तो यह है कि आदि काल से पशु मनुष्य का भोजन रहा है और आज भी है l हालांकि हम पशुओं का संरक्षण पुरातन काल से करते आये है l इसके बावजूद संसार के लगभग 95 प्रतिशत लोग मांसाहारी है l मात्र 5-6 प्रतिशत लोग ही शाकाहारी है l भारत में लगभग 70 प्रतिशत लोग मांसाहारी है तथा मात्र 30 प्रतिशत लोग ही शाकाहारी है l जबकि हमें शाकाहारी देश कहा जाता है l कुछ दिन पहले मेनका गाँधी उत्तराखंड मैं आकर बता गई कि हमें प्रकृति के साइकिल मैं हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए l परन्तु यह अमेरिका वाले क्या कर रहे हैं और कैसे प्रक्रति के कार्य पर हस्तक्षेप कर रहे हैं ? वह जानवरों की संख्या पर प्रतिबन्ध कैसे लगा रहे हैं ? सच तो यह है वह प्रक्रति के साइकिल मैं संतुलन स्थापित करते हैं l इन प्रश्नों का उत्तर मिलना ही चाहिए l इस मामले मैं केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को हस्तक्षेप करना चाहिए जिससे कि मानव व जानवर का संतुलन स्थापित हो सके ! किसी भी जानवर का यदि संतुलन मानव के मुकाबले ज्यादा हो तो उतने जानवर मार दिए जाने चाहिए ! जैसे हर शहर मैं आवारा कुत्तों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ रही है उनको पहले की तरह मार देने का फैसला किया जाना चाहिए ! बन्दर एक उत्पाती जीव है l बन्दर खाता कम है पर खेती, फल, पेड़ आदि को बड़ी मात्रा मैं उजाड़ता ज्यादा है ! उनका भी जब जब संतुलन बिगड़े तो यदि धार्मिक कारणों से इन्हें मारा नहीं जा सकता तो इनका बंध्याकरण किया जाना चाहिए, जिससे की प्रकृति का साइकिल सही रहे l यह कार्य तो सरकार व केंद्र सरकार ही मिल कर सकते है ! यदि उत्तराखंड मैं यह संतुलन गड़बड़ा रहा है तो इसे समय समय पर ठीक करना सरकार का ही कार्य है l पर्यावरण संरक्षण के नाम पर जनता को गुलदार व बाघ यहाँ तक कि बन्दर व कुत्तों का भोजन बनने का अधिकार कब तक दिया जाएगा ? उत्तराखंड के अनेक गाँव मैं आये दिन गुलदार के आतंक के कारण लोग अँधेरे से पहले ही घर के अन्दर शरण ले रहे है ! किसी का मासूम बेटा व किसी की पुत्री या पत्नी गुलदार का शिकार हो रही है और उनकी मौत पर लोग रोने के अलावा क्या कर सकते हैं ? भारत के लोग पशु प्रेमी है हम उनकी पूजा भी करते हैं l परन्तु यह तो मानव के अस्तित्व का प्रश्न है l क्या सरकार इस समस्या के समाधान हेतु गंभीर चिंतन कर इसका हल ढूढने हेतु कार्य करेगी ?

क्या पलायन के लिए मानव-पशु अनुपात का गड़बड़ाना दोषी है ?
क्या पलायन के लिए मानव-पशु अनुपात का गड़बड़ाना दोषी है ?

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