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जड़ों की खोज मैं – Roots of Barola Badola बड़ोला – by DN Barola Unteshwar Mahadev

D.N.Barola
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जड़ों की खोज में – डीएन बड़ोला (DN Barola) ……..1
1)उत्तराखण्ड के बडोला, बड़ोला, Barola की जड़ों की खोज : साल 2015 में मुझे अपने पैत्रक गाँव कनरा जाने का शुभ अवसर मिला था ! हमारा गाँव 1000 वर्ष प्राचीन उन्टेश्वर महादेव मंदिर एवं विश्व प्रसिद्द कल्याणी आश्रम डोल के लिए प्रसिद्द है l कनरा (लमगड़ा) में बुजुर्गों से बातचीत में कनरा के उन्टेश्वर महादेव मंदिर के विषय में प्रचलित किवदंती के विषय में मुझे बताया गया ! उसके अनुसार प्राचीन समय की बात है, यह शिवलिंग कनरा में प्रकट हुवा था l (इसकी पूरी कहानी कृपया पैराग्राफ 2 में देखें ) जब यह लिंग शिव जिव्हा के रूप में अवतरित हुवा, उस समय नाथ को स्वप्न में आकाशवाणी हुई कि इस शिव लिंग की पूजा या तो तू करेगा या मनु महाराज की संतान जो मानस गोत्र मैं गढ़वाल में उत्पन्न हुई है वही करेंगे ! तब मनु महाराज की संतान की खोज में 10-15 ग्रामवासियों का एक दल गढ़वाल गया l जब गढ़वाल मैं खोज की गई तो मानस गोत्र मैं उत्पन्न मनु महाराज की संतानों को खोज लिया गया ! वह दो भाई थे ! उन्होंने डोली में कनरा जाने की इच्छा प्रकट की ! श्रद्धालु ठाकुर लोगो ने डोली का इंतजाम किया और दोनों भाइयों को कनरा लाया गया ! उसके पश्चात हरिद्वार में उन दोनों का यज्ञोपवीत कराया गया l दोनों भाई बारी बारी से कनरा मैं शिव लिंग की पूजा करने लगे ! आज भी यह प्रथा बदस्तूर जारी है ! कनरा ग्राम में बोरा, बिष्ट, नेगी, फर्तयाल आदि जाति के लोग रहते हैं उन्हीं के सहयोग से उन्टेश्वर महादेव मंदिर के समस्त धार्मिक कार्य संपन्न होते है ! इसके अतिरिक्त ग्राम बचकांडे, स्यूनानी,पनयाली छीना, लमकोट तल्ला व मल्ला, रणाऊँ, निरई, ल्वाली आदि के ग्रामवासियों का इस सम्बन्ध मैं सक्रिय सहयोग हमेसा ही रहता है ! इस गाँव में बड़ोला ब्राह्मणों की एक बाखली है ! परन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि बड़ोला लोग किस स्थान से आये ! संजय बडोला जो पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले है उन्होंने मुझे बताया है की बडोला, बडोली से आये हैं और वह सारे गढ़वाल और कुमाऊं मैं फ़ैल गए l वह राजस्थान की धोलपुर स्टेट से आये l साल 2001-02 की बात है जब मैं कांग्रेस के उत्तराँचल राज्य चुनाव प्रभारी के पद पर था तथा मेरा मुख्यालय कांग्रेस कार्यालय, राजपुर रोड, देहरादून था , तब मैंने पता लगाया था कि बडोला या बड़ोला लोग यमकेश्वर और पोखरा ब्लाक मैं रहते हैं l चम्पावत जिले मैं भी बडोला लोग रहते हैं l संजय ने यह भी बतलाया कि चम्पावत मैं कई लोग अपने नाम में सिंह भी जोड़ते हैं l कुछ हमारे रिश्तेदार शर्मा व पांडे लिखने लग गए हैं तथा मुझे पता लगा है कि कुछ बढ़िया पांडे भी लिखते हैं l इस सम्बन्ध में खोज से पता चला कि कत्युरी राजवंश के राजा पृथ्वीपाल की रानी जिया थी ! इनके राज्य में राज्य के मुख्य पंडित को बढ़ूँवा पंडित (बड़े पंडित ) की पदवी दी जाती थी ! हो सकता है इसी से प्रभावित होकर कुछ लोग स्वयं को बढ़िया पांडे लिखने लग गए हों ! असाम में बरुवा जाती पाई जाती है ! उदाहरण के अनुसार हेम कान्त बरुवा एक प्रसिद्द नाम है ! संजय के अनुसार धोलपुर स्टेट के महाराजा से बडोला लोगो को सरदार की पदवी मिली थी और वह अपने नाम मैं सिंह जोड़ देते हैं l लेकिन वह हैं ब्राहमण l Suneel Badola लिखते हैं हमारी आराध्य देवी हैं श्री बाला त्रिपुर-सुन्दरी या श्री बाला त्रिपुरा, ‘दस महा-विद्याओ’ में तीसरी महा-विद्या भगवती षोडशी है, अतः इन्हें तृतीया भी कहते हैं । बडोली धूर में बाल कुंवारी कुलदेवी का प्राचीन मंदिर है l इसके चारों ओर बडोली गाँव बसा है l बडोली और धूर, दोनों गाँव बडोला लोगो के हैं ! बड़ी दूर दूर से आकर लोग यहाँ पर मन्नतें मांगते हैं जो कि पूरी भी होती हैं l यहाँ बकरों की बलि भी दी जाती थी l श्रद्धालुवों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कर इसे भव्य रूप दिया है l Santosh Badola लिखते हैं बडोली धूर का मन्दिर हमारी कुलदेवी महाकाली का मंदिर है l इसका निर्माण हमारे पूर्वजों द्वारा किया गया था l Sunil Badola के अनुसार धोलपुर के राजा ने अपने कुल पुरोहित को सिंह की उपाधि दी थी ! इस कारण कुछ लोग सिंह भी लिखते हैं ! लेकिन वह हैं ब्राह्मण ही ! परन्तु चम्पावत जिले में वह अपने को राजपूत कहते हैं l उनमें से एक श्री शेर सिंह बडोला धोलपुर महाराजा के ए०डी०सी० थे ! सुनिल कहते हैं, मैं यमकेश्वर ब्लाक पट्टी उदयपुर के ग्राम ढुंगा का निवासी हूँ ! हमारे बजुर्गों के अनुसार हमारे पूर्वज सन 1768 में बडोली (जोधपुर) से यमकेश्वर आये थे l आज यहाँ पर लगभग 8 गाँवों में बडोला लोग बसे हुए हैं l बडोली मैं संभवतया अजमेर राजस्थान से आये क्योंकि पट्टी उदयपुर है ! भीष्म कुकरेती जी कहते हैं इस सम्बन्ध मैं कुछ सूचना बडोला गौड / उज्जैन 1741 बडोली उज्जवल पंथारी जलन्धर सन्दर्भ में गढ़वाल का इतिहास, जिसके लेखक थे हरिकृष्ण रत्यूड़ी जो टेहरी रियासत के प्रधान मंत्री थे, में उपलब्ध है ! वह कहते है उज्जैन मैं भी बडोला लोग रहते है तथा आपके पूर्वज धोलपुर स्टेट के बडली ग्राम से आये थे ! चन्द्र मोहन बडोला के अनुसार जहां तक बडोला या बड़ोला की बात है कुमायूं क्षेत्र मैं ड को ड़ के रूप में उच्चारण किया जाता है l जैसे अल्मोड़ा, किल्मोड़ा, लमगड़ा को अंग्रेजी मैं Almora, Kilmora, Lamgara लिखा जाता है l इसी तरह बड़ोला को Barola लिखा जाता है अतः एक बात तो सिद्ध होती ही है कि बडोला, बड़ोला या Barola सब एक ही जाति है ! चम्पावत में बड़ोला नहीं बडेला (Badela) लिखा जाता है ! यह लोग देवीधुरा एवं भिंगरारा (Bhingrara) क्षेत्र में रहते हैं जिनका बडोला लोगो से सम्बन्ध नहीं मालूम पढ़ता l मेरी जानकारी के अनुसार उज्जैन मैं भी बडोला लोग है ! परन्तु कनरा के बड़ोला लोग ही ड के नीचे बिंदा लगते है l यह भी पता चला है कि हमारे पूर्वज धौलपुर स्टेट के बड़ली या बडली ग्राम से आये थे ! लगता है इसमें से कुछ लोग उज्जैन भी चले गए होंगे ! टेहरी स्टेट के डोजियर के अनुसार बडोला लोग ‘लड़ाकू ब्राहमण जाति’ के लोग हैं l इस बात पर मैंने संजय से कहा कि बडोला लोग अधिकारिक एवं आक्रामक (authoratitive & aggresive) प्रवृति के तो होते ही हैं l इसलिए मुझे लगा कि शायद बडोला या बड़ोला सब एक ही हैं l उन्होंने यह भी बताया कि कत्युरी राजाओं के समय में ‘बडोला संघ’ भी बनाया गया जिसका काम कत्युरी राजों द्वारा नायर घाटी के आक्रमण को विफल बनाना था l उन्होंने यह भी लिखा है कि 1993 में वह श्री एसबीएस पंवार डी०ओ० उत्तर प्रदेश के संपर्क मैं आये जो कि टेहरी गढ़वाल के राज परिवार से ताल्लुक रखते थे, जिनसे उन्हें यह सब जानकारी मिली l हालांकि अब श्री पंवार नहीं रहे l सुश्री रेनू प्रसाद जी के अनुसार उनके दादाजी लेफ्टिनेंट विजय राम, सर्वे ऑफ़ इंडिया मैं कार्यरत थे तथा उनके बड़े भाई लेफ्टिनेंट ज्वाला राम धोलपुर महाराज की सेवा में थे ! सन 1946 में उनकी माता श्रीमती बिमला बुदाकोटी को लेफ्टिनेंट ज्वाला राम, धोलपुर महारानी के महल में महारानी के आमंत्रण पर कन्या पूजन हेतु ले गए थे l उस समय उनकी माता की उम्र मात्र 4-5 साल थी ! ज्ञान्तव्य हो कन्या पूजन मैं कम उम्र की कुंवारी कन्याओं को ही आमंत्रित किया जाता था l यह रिवाज आज भी प्रचलित है ! इससे स्पष्ट होता है कि बड़ोला या बडोला जाति मूल रूप से ग्राम बडली या बड़ली धौलपुर से आई l इनमें से कुछ लोग गढ़वाल मैं बस गए और कुछ लोग कुमायूं में बस गए l Bhaskar Badola पोखरा ब्लाक में पट्टी कोलागड़ में भी 5-6 गाँव बडोला लोगों के हैं ! हमारे गाँव का नाम बडोल गाँव है ! एसडी बड़ोला: गढ़वाल में जो बडोला हैं वही बड़ोला हैं क्योंकि वे लिखते तो बडोला हैं पर उच्चारण बड़ोला ही किया जाता है l अंगरेजी मैं बड़ोला को Barola लिखा जाता है l अपनी नई रचना में उन्होंने बडली के भैरों जी की आराधना निम्न प्रकार की है ! हस्त पिनाक दण्ड अरिदहनम, शाश्वत काल कटारी सहितम l रूप कुरूप विरूप विवर्तम, दैत्य दलन मन भाव भाषितम l काल भैरवी तपोनिष्ठï हैं, मृत्यु लोक पूजित रक्षित हैं l यमकेश्वर हितैषी (फेस बुक) बताते है : यमकेश्वर में कई गांवों में जो बडोला जाति के लोग आये थे उनके अनुसार बडोला लोगो का एक झुण्ड 1450 – 1500 ईस्वी के लगभग हिमालय में चार धामों की यात्रा पर आया था, जो वहीं पर बस गये, तब यह जाति बड़ोली के नाम से जानी जाती थी l वह 1550 के शीतयुग के समय यमकेश्वर के “ढूंगा गांव” में बस गये तथा खेती बाड़ी करने के लिए और 1750 – 1800 तक ढूंगा गांव में बसते रहे l उसके बाद कुछ परिवार वहां से आकर पौड़ी गढवाल के अन्य भागों में बिखर गये l यमकेश्वर या पौड़ी के अन्य कई हिस्सों में बडोला लोग निवास निवास करते हैं l कुछ ढूंगा गांव में, कुछ दमराड़ा गांव में, कुछ अलग अलग परिवार कई गांवों में बसे हुये हैं l उत्तराखण्ड में इनकी जन संख्या 5,000 से 10,000 तक हो सकती है ! बडोला जाति के लोगों की गिनती उच्च श्रेणी के ब्राह्मणों में की जाती है l कुछ विद्वानों से मैंने गोत्र के विषय में परामर्श किया ! सबने एक मत से कहा कि एक जाति मैं एक से ज्यादा गोत्र हो सकते हैं ! “बडली” या “बड़ली” गाँव (धोलपुर स्टेट) को कुछ लोग बडली और कुछ लोग बड़ली कहते हैं ! इससे भी स्पष्ट होता ही कि बडोली धूर आकर कुछ लोगों ने बडोला लिखा और कुछ लोगो ने बड़ोला ! बडली या बड़ली गाँव के कुछ लोगों का गोत्र भारद्वाज और कुछ लोगों का मानस हो सकता है ! यह भी हो सकता है लोग इस गाँव को बडली कहते हों उनका गोत्र भारद्वाज हो और जो इस गाँव को बड़ली गाँव कहते हों उनका गोत्र मानस हो ! चूँकि बड़ोला को अंगरेजी मैं Barola लिखा जाता है इसलिए बडोला, बड़ोला या Barola सब एक ही जाति है ! क्रमशः ……………2
जड़ों की खोज में – डीएन बड़ोला (DN Barola) ………….2 2)उन्टेश्वर महादेव मंदिर : (उन्टेश्वर महादेव की यात्रा एवं मंदिर का व्रतांत – विडियो : चन्द्र शेखर बड़ोला 17.4.2015 ) लिंक : https://youtube.com/watch?v=X_GfqH8ZUQg कनरा गाँव 1000 वर्ष प्राचीन उन्टेश्वर महादेव मंदिर एवं विश्व प्रसिद्द कल्याणी आश्रम डोल के लिए प्रसिद्द है l चन्द राजाओं के राज्य काल मैं स्थापित एवं पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित 1,000 वर्ष पुराना ऊन्टेश्वर महादेव मंदिर, शिव-जिव्हा के रूप मैं स्थापित है ! यह देवाधिदेव महादेव का ही चमत्कार है कि इस शिव लिंग मैं जो भी जल अर्पित किया जाता है वह अलोप हो जाता है ! शिव रात्रि के दिन यहाँ पर एक बड़ा धार्मिक महोत्सव होता है ! यह मेरा पैत्रक निवास है ! बड़ोला या Barola लोगों की उन्टेश्वर महादेव पर अपार श्रद्धा है ! उन्टेश्वर महादेव के सम्बन्ध मैं एक प्राचीन कहानी है ! कहते है कि जब कभी भी प्राकृतिक संपदाओं का आवश्यकता से अधिक दोहन हो जाता है तो प्रथ्वी वासियों की समस्याएँ भी बढ़ने लगती है ! तब देवाधिदेव महादेव अवतरित होते हैं l यह प्रकृति चक्र है ! इसी कारण से उन्टेश्वर महादेव कनरा मैं प्रकट हुए ! प्राचीन कथा के अनुसार जब देवता एवं राक्षस प्रथ्वी से बहुत अधिक मात्रा में रिद्धि सिद्धि का दोहन करने लगे तब माँ पृथ्वी के पास मदद के लिए पहुँची l ब्रह्मा ने उन्हें भगवान् विष्णु एवं महादेव के पास भेजा l त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश ने उनकी समस्या को समझा l तब एक आकाशवाणी हुई l आकाशवाणी में कहा गया कि जब ब्रह्मदेव का सर ब्रह्म-कपाली मैं गिरेगा ठीक तब ही महादेव दर्शन देंगे तथा अनेक स्थानों पर शिव लिंगों का प्रादुर्भाव होगा l उस समय पृथ्वी की समस्त समस्यों का समाधान होगा और पृथ्वी को शांति मिलेगी और महादेव उन्हें दर्शन देंगे l मान्यता के अनुसार जब महादेव ने झांकर पहाड़ी में दर्शन दिए तब ही अनेक स्थानों मैं शिव लिंगों का अवतरण हुवा l उनमें से एक शिवलिंग ‘उन्टेश्वर महादेव’ शिव जिव्हा के रूप में कनरा में अवतरित हुए ! लिंक : https://youtube.com/watch?v=sw-KkuCV6nw (उन्टेश्वर महादेव मंदिर का व्रतांत – विडियो : चन्द्र शेखर बड़ोला 22.4.2015) कनरा के शिव लिंग के विषय में एक किवदंती है ! चंद शासकों के समय में रिंगाल की झाड़ियाँ गाँव के बाहर बहुत मात्रा में फ़ैली हुई थी ! रिंगाल से ग्रामवासी नाना प्रकार की वस्तु बनाते थे ! एक समय की बात है एक ग्रामवासी ने अपनी हँसियाँ को धार देने के लिए एक पत्थर से घिसा l अचानक पत्थर में से खून की धारा बहने लगी l ग्रामीण भयभीत हो चिल्लाते हुए वहाँ से भागा पर रास्ते में शेर ने उसको अपना निवाला बना डाला l बाद में ग्रामवासियों ने शिवलिंग को विधिवत स्थापित कर उसकी पूजा करना प्रारम्भ कर दी l शिव लिंग मैं हँसियाँ का निशान आज भी विद्वमान है ! इस लिंग की लम्बाई जमीन से ऊपर 7 फीट है और बांकी लिंग प्रथ्वी के अन्दर है l प्रारंभ में ही ग्रामीणों ने इस लिंग की लम्बाई जानने हेतु इसकी खुदाई की पर इसका पारावार नहीं मिल पाया और खुदाई बंद करनी पड़ी l इस शिव लिंग के पास ही पंचमुखी गणेश की मूर्ती विराजमान है l यहां पर अक्सर सांप दिखाई देते है जो कि महादेव के गले के हार माने जाते हैं ! शिव मंदिर का निर्माण चंद राजाओं ने किया तथा यहाँ पर सूर्य एवं दुर्गा के कुछ मंदिर भी हैं l उन्टेश्वर महादेव मंदिर इस इलाके का अति प्राचीन मंदिर है l ग्रामीणों के अनुसार अनावृष्टि के कारण 1990 मैं भयंकर अकाल पड़ा l ग्रामीणों ने शिवलिंग मैं सैकड़ों गागर जल अर्पित किया l जितना भी जल शिव जिव्हा में अर्पित किया गया वह सब अलोप हो गया l जल अर्पित किये जाने के पश्चात महादेव प्रसन्न हुए और गाँव मैं जम कर वर्षा हुई जिससे ग्राम वासियों ने राहत की सांस ली l सन्तान प्राप्ति : शिव रात्रि को एक बड़े मेले का हर वर्ष आयोजन किया जाता है ! उसमें दूर दूर के श्रद्धालु भाग लेते हैं l रात्रि मैं चार प्रहर की पूजा, जागरण एवं अखण्ड कीर्तन एवं महादेव का रुद्राभिषेख किया जाता है l संतान प्राप्ति के इच्छुक दम्पति अटूट श्रद्धा से इस मंदिर में आते हैं l भोले नाथ उनको निराश नहीं करते ! इस हेतु दम्पति को 12 घंटे की तपस्या पूरी करनी होती है ! शाम 6 बजे से प्रातः 6 बजे तक दम्पति शक्ति की अराधना करते है l स्त्री खड़ी होकर “नमः शिवाय” का पाठ करती है जबकि पुरुष के खड़े होकर “ॐ नमः शिवाय” का पाठ करने का विधान है l इसमें महिला के हाथ 12 घंटे दीपक लगातार जलता रहता है ! इस अवधि में दीपक की लौ नहीं बुझनी चाहिए अन्यथा यह अपशकुन माना जाता है ! यदि महादेव दम्पति की इच्छा पूर्ण नहीं करना चाहते तो स्त्री को उल्टी या चक्कर आ जाता है l रोट का प्रसाद : “वैसाखी पूर्णिमा के दिन गेहूं की नई फसल की कटाई के समय भोलेनाथ को रोट का भोग लगाया जाता है एवं श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है ! उन्टेश्वर महादेव मन्दिर अल्मोड़ा से 43 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है l अल्मोड़ा से लमगड़ा फिर चायखान-थुवासिमल रोड सड़क से कनरा आराम से पहुंचा जा सकता है l चायखान से 3 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम कनरा के अंतर्गत ही विश्व प्रसिद्द कल्याणी आश्रम है ! कनरा की बासमती प्रसिद्द है तथा यहाँ पर मडुवा व झूंगरा व अन्य अनाज होता है जिसकी अब काफी मांग है ! क्रमशः ……………3
जड़ों की खोज में – डीएन बड़ोला (DN Barola) …………..3 3)बड़ली या बडली के भैरू’ मंदिर जोधपुर राजस्थान lhttps://facebook.com/DevalayaParichay/posts/905980509474366:0 जोधपुर शहर से 13 किलोमीटर दूर जोधपुर-जैसलमेर मार्ग पर बडली/बड़ली गॉंव में स्थित “बड़ली के भैरू’ मंदिर नाम से विख्यात यह मंदिर 700 वर्ष पुराना है। इस मंदिर का निर्माण मारवाड़ के नरेश राव सीहाजी ने करवाया था, जो पूरे राजस्थान में विख्यात है। बड़ली के भैरूजी की काले पत्थर से निर्मित आदमकद प्रतिमा है, जिसके पास तीन छोटी और प्रतिमाएँ हैं। मूर्तियॉं एक चबूतरे पर विराजमान हैं। मंदिर के पीछे विशाल तालाब के पीछे पुरोहितों की कुलदेवी विशौतरी माता का मंदिर है। मंदिर के निर्माण की कहानी कुछ इस प्रकार है। रावसिहाजी जोधपुर के साथ कन्नौज के भी शासक थे । इन्होंने मारवाड़ से बाहर रहकर 13 वर्ष तक कन्नौज पर भी शासन किया था। वे प्रायः मारवाड़ भी आते रहते थे । एक बार जब वे कन्नौज से अपने वफादारों व राज पुरोहितों के साथ मारवाड़ लौट रहे थे, तभी मुल्तान की तरफ से मुगलों ने मारवाड़ पर आक्रमण कर दिया। राव सीहाजी उस समय द्वारिका जा रहे थे, लेकिन युद्ध की विभीषिका देखकर वे स्वयं वहॉं नहीं जा पाये और अपने राज पुरोहितों को काशी भेजकर “भैरूजी’ की मूर्ति लाने की आज्ञा देकर स्वयं आक्रमणकारियों पर दलबल समेत टूट पड़े और मुगलों को परास्त किया l इधर जब राज पुरोहित राव सीहाजी के इष्टदेव के रूप में काले पत्थर की “भैरूजी’ की मूर्ति लेकर मारवाड़ लौटे तो उस समय राव सीहाजी पाली में डेरा डाले हुए थे । कुछ दिन बाद राज पुरोहितों के साथ भीनमाल व खेड़ होते हुए जोधपुर पहुँचे तो सीमा में प्रवेश के दौरान इन्हें एक हराभरा क्षेत्र व पानी का विशाल तालाब दिखाई दिया, जहॉं बड़ (बरगद) का एक विशाल वृक्ष था। राव सीहाजी अपने लाव-लश्कर समेत यहीं ठहर गये और तालाब के किनारे भैरूजी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करने का मन बनाया। राज पुरोहितों के सहयोग से विधिवत् पूजा-अर्चना के बाद अपने इष्टदेव भैरूजी को यहॉं स्थापित कर दिया। धीरे-धीरे भैरूजी की ख्याति जनमानस में फैलने लगी तो ग्रामीणोंने भारी भरकम बड़ के पेड़ के नाम से ही इस स्थान का नाम “बड़ली’ रख दिया व कालांतर में यह मंदिर “बड़लीया बडली के भैरू’ के नाम से विख्यात हो गया। समूचे राजस्थान के अलावा गुजरात व मध्य-प्रदेश तथा महाराष्ट्र के भी श्रद्धालु मनोवांछित आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु आते हैं। अनेक श्रद्धालुजन पुत्र-प्राप्ति की इच्छा रख के आते हैं, और भैरुजी उसे पूरा करते है। इस संबंध में मंदिर के पुजारी बताते हैं कि एक दफा एक हिजड़े ने भी भैरूजी के दर्शन कर परीक्षा के लिए संतान प्राप्ति का वर मांग लिया । संयोग से हिजड़े की मनोकामना पूर्ण हो गई और उसे गर्भाधारण हो गया। बाद में जब हिजड़े को अपनी नपुंसकता का आभास हुआ तो उसे शर्म महसूस हुई। अतः लोकलाज के भय से उसने यहीं आकर भैरूजी से क्षमा मॉंग ली व बाद में उसका गर्भपात हो गया। इसी हिजड़े ने यहॉं एक सॉल (शेड) का निर्माण करवाया, जो आज भी मंदिर के दायीं ओर बनी हुई है, जहॉं श्रद्धालु ठहरते हैं। भैरूजी को प्रसाद के रूप में “शराब’ व मीठे का भोग ही चढ़ता है, लेकिन प्रसाद सीमा से बाहर न ले जाने की परंपरा भी है। इसलिए सभी श्रद्धालु प्रसाद यहीं वितरित कर देते हैं। मंदिर से जाते वक्त श्रद्धालु मंदिर में चींण (धागा) बॉंध कर फिर पीछे मुड़कर नहीं देखते हैं। भैरूजी की पूजा के साथ यहॉं बड़ को पूजने की भी रीति है। भैरूजी के मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद की शुक्ल पक्ष में तेरस, चौदस व पूर्णिमा के रोज भारी मेला लगता है। हर तीन साल में अधिक मास पर यहॉं भौगिशैल परिक्रमा का मेला भी लगता है, जिसमें राजस्थान के दूरदराज क्षेत्रों से भारी तादाद में श्रद्धालु आते हैं । हमने जो जानकारी इकठ्ठा की उसके अनुसार बर्ली (Barli) के पास ग्राम बड़ली मैं भेरू जी का मंदिर है तथा वहां पर एक तालाब भी है ! कुछ लोग इस स्थान को बडली लिखते हैं और कुछ बड़ली ! यहाँ भैरब जी के कई मंदिर हैं ! मंदिरों की एक लम्बी श्रृंखला के तहत प्रबल जनास्था का मंदिर जोधपुर शहर से 13 किलोमीटर दूर जोधपुर-जैसलमेर मार्ग पर बड़ली गॉंव में है। लगता है गढ़वाल के ग्राम बडोली धूर आने पर ‘बड़ली’ या ‘बडली’ ग्राम का अपभ्रंश बडोली धूर बना हो ! गाँव के नाम पर ही गढ़वाल के लोगों ने बडोला और जब यही लोग कुमायूं की तरफ आये तो बड़ली के बजाय बड़ोला सरनेम लिखना प्रारंभ कर दिया हो ! इस खोज से एक बात तो स्पष्ट है बडोला, बड़ोला या Barola सब एक ही है ! बड़ली ग्राम के इस मंदिर का विडियो का लिंक है : https://youtube.com/watch?v=BMq5ilOleF4 अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें : https://google.com/…/data=!3m1!4b1!4m5!3m4!1s0x39418fda…
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है बडोला या बड़ोला या Barola लोग बडली या बड़ली (जोधपुर) राजस्थान से आये थे ! कुछ लोग यमकेश्वर ब्लाक मैं बडोला जाति बनकर ढूंगा गांव व कुछ अन्य गाँवों में तथा कुछ लोग पौड़ी के “बडोली धूर” में और कुछ कुमाऊं के कनरा (अल्मोड़ा) बसते रहे l लेख के अंत में प्रस्तुत है एक लघु कविता ! लेखक हैं लखनऊ से पत्रकार एवं साहित्यकार एसडी बड़ोला (षष्टी द्वादस ) – विहंगम संगम
कब से देखा सपना देखा, अपनों का हो लेखा जोखा
कनरा और बडोली धुर में, ऊंटेश्वर का मंदिर देखा
देखो सारे ग्रन्थ खुले हैं, कहां कहां ये फूल खिले हैं
कहो बड़ोला, कहो बडोला, ये तो सारे तार मिले हैं। लगता सारे पाप धुल गये, सारे अपने आप धुल गये यह लेख मैं अपने अनेक सहयोगियों के साथ देवाधिदेव महादेव हमारे कुल देवता उन्टेश्वर महादेव की कृपा एवं की प्रेरणा से ही लिखा होगा, ऐसा मेरा प्रबल विश्वास है ! परन्तु यह श्रंखला खोज हेतु जारी रहेगी l क्रमशः ……………4
फोटो विवरण : 1 – लेखक डीएन बड़ोला; 2 से 12 तक उन्टेश्वर महादेव मंदिर ; 13 – डोल आश्रम ग्राम कनरा ;14, 15, 16,17 बडोली धूर; 18 व 19 बडोली; 20 से 24 बडली या बड़ली (जोधपुर) के भैरूं मंदिर की झलकियाँ;
लेखक ! देवकी नन्दन बड़ोला, डीएन बड़ोला (DN Barola) बड़ोला काटेज, रानीखेत l संपर्क : 9412909980, dnbarola@yahoo.co.in
सहयोग : संजय बडोला, सुनील बडोला, भीष्म कुकरेती, चन्द्र मोहन बडोला, सुश्री रेनू प्रसाद, एसडी बडोला, यमकेश्वर हितैसी आदि !
विशेष सहयोग ! चन्द्र शेखर बड़ोला, पंडित खीमा नन्द बड़ोला, श्रीमती उदा बड़ोला, लीलाधर बड़ोला, श्रीमती प्रेमा पांडे आदि !
समर्पित : पूज्य बाब्जी (पिता ) पंडित मोती राम बड़ोला एवं ईजा श्रीमती पार्वती देवी !

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