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रावत तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं !
जनतंत्र का महायुद्ध समाप्त हो चुका है ! महायुद्ध हो और महाभारत का जिक्र न हो ऐसा कैसे हो सकता है ? प्रचंड बहुमत एवं अनगनित सेना एवं सेनानियों से लैस महा शक्तिशाली सम्राट अपने ही राज्य के एक राजा के साथ युद्ध करने के लिए अपनी सेना को पूरी रसद एवं वित्त के साथ रवाना कर चुका था और सेना बहुत दिन से राजा से युद्ध की तैयारी करने हेतु उसकी राजधानी के समीप डेरा जमाए युद्ध के लिए तत्पर थी ! पहले उसने छद्म युद्ध का सहारा लिया पर फेल हुवा, क्योंकि सत्य राजा के साथ था ! एक तरफ सम्राट का प्रचंड बहुमत और दूसरी तरफ कमजोर गठबंधन वाला राज्य ! युद्ध शुरू हुवा ! युद्ध के सारे नियम तोड़कर शाम, दाम, दंड और भेद का प्रयोग करते हुए उन्होंने अकेले राजा को खूब घुमाया ! राजा अपने राज्य में कभी उत्तर की तरफ जाता तो कभी दक्षिण की तरफ ! कभी पूरव की तरफ तो कभी पश्चिम की तरफ ! पर राजा ने हार नहीं मानी ! और वह बहादुरी से लड़ता रहा और लड़ता ही रहा ! पर यह क्या ? जनतंत्र के सारे नियम तोड़ कर खुद सम्राट भी अपनी पूरी ताकत के साथ युद्ध के मैदान में कूद पढ़े ! परन्तु राजा बहादुरी से अभिमन्यु की तरफ लड़ता लड़ता हार गया ! उसके दोनों राजमहल ध्वस्त हो गए ! उसने हार को विनम्रता एवं बहादुरी से स्वीकार किया और राजपाट सम्राट को सौंप दिया ! राजपाट सौपने के साथ ही बहादुर राजा ने कहा : यह हार हमें स्वीकार है पर बहुत शीघ्र विजय श्री के हार हमारे गले में होंगे क्योंकि ह्म तो निरंतर युद्ध करने वाले योद्धा है ! हार जीत तो हमारे लिए एक खेल है ! और आसमान जय उत्तराखण्ड के नारों के गूंज उठा ! और सम्राट छोटे छोटे राज्यों को छल बल से जीतने के लिये अपने अभियान में चल पड़ा ! राजा के 70 में से मात्र 11 किले बचे थे जिनमें से एक किला हमारे कब्जे में है ! और अब किले से ही फिर से गूजेगी युद्ध की डंकार ! यही जनतंत्र की पुकार है ! फ्रेंड्स इस जनतंत्र के महाभारत में किसकी भूमिका क्या थी यह आप समझ सकते हैं ! होली के परिपेक्ष में यह लेख डीएन बड़ोला, निदेशक उत्तराखंड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी एवं कुमायूं मंडल विकास निगम ने लिखा है !
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